दूसरों की आलोचना क्यों?

– संत दर्शन सिंह महाराज
अगर हम सब अपनी ज़िंदगी को देखें तो एक बात स्पष्ट हो जाती है कि हम अपनी ज़िंदगी का अधिकांश भाग दूसरों की कमजोरियँा तलाश करने में गुज़ारते हैं। रोज़मर्रा की हमारी सबकी यही दुःखद कहानी है। यदि हम घर पर होते हैं तो वहँा भी यही बातें होती हैं कि फलँा रिश्तेदार बुरा है, फलँा आदमी खराब है। यदि हम दफ्तर में होते हैं तो वहँा भी 99ः जो बातें होती हैं तो उसमें दूसरों की बुराई की जाती है। यही हाल व्यापार करने वालों का भी होता है क्योंकि जब कभी वो मेरे पास आते हैं तो उनका अंदाजे बयान यही होता है। हम सुबह से शाम तक दूसरों की बुराईयँा निकालते रहते हैं। ऐसा करते हुए हम अपने गिरेबान में कभी नहीं झांकते कि हममें कितनी बुराईयँा हैं? अगर हमें अपनी बुराईयों का पता चल जाए कि हममें कितनी बुराईयँा हैं तो हम ये भी भूल जाएंगे कि दूसरों में बुराई है भी या नहीं।
अगर आप सही पूछें तो हमें अपने मुतल्लिक बहुत कम पता है। हमें हर आदमी में ऐब दिखाई देता है। वास्तव में हमारा दृष्टिकोण ही गलत है। हमारी अँाखें हमेशा दोश ही तलाश करती रहती हैं। वो खूबी तलाश ही नहीं करती। अगर वो खूबी तलाश करें तो तब पता चले कि कहँा खूबी है? जो कुछ हम दूसरों में पाते हैं, वह हमारे मन की स्थिति का अक्स होता है। जो बुराई या कमजोरी है वह तो हमारे अंदर है। महापुरुष यही बताते हैं कि भई हमारा नुक्स यही है कि हम अपने गिरेबान में तो झांकते नहीं कि हममें कितने दोष हैं। हम सुबह से शाम तक दूसरों की बुराईयँा निकालते रहते हैं। अगर हम हर समय दूसरों के दोषों का चिंतन करेंगे तो हमारे अंदर वह सारे दोष आ जाएंगे। प्रकृति का भी यह नियम है कि जिसका तुम चिंतन करोगे उसी का रूप हो जाओगे।
जब हम परमात्मा का चिंतन करेंगे तो हम उन्हीं का रूप हो जाएंगे और हमारे अंदर जो बुराईयँा और दोष हैं, वो निकल जाएंगे। यदि हम चाहते हैं कि हम परमात्मा से मिल जाएं तो क्या उनको लुभाने के लिए हमने कोई श्रृंगार किया है? दुनिया में भी हम हर रोज़ सुबह बनते-संवरते हैं। अपने चेहरे के दागों को दूर करते हैं क्योंकि हमें अपने महबूब से मिलना होता है और हम चाहते हैं कि हमारे चेहरे पर कोई भी दाग़ न हो। इसी तरह अगर हमें परमात्मा से मिलना है तो हमारी आत्मा के ऊपर जो दाग़ हैं, उन्हें हमें हटाना पडे़गा।
जब हम पूर्ण महापुरुषों के चरणों में जाते हैं, उनसे नामदान की दीक्षा प्राप्त करते हैं, उनके कहे अनुसार ज़िंदगी बिताते हैं और ध्यान-अभ्यास करते हैं तो हमारी आत्मा के ऊपर जो दाग़ लगे हुए हैं, वो हट जाते हैं और हम परमात्मा से एकमेक हो जाते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *