नाबार्ड के मुख्य महाप्रबंधक द्वारा पिथौरागढ़ व चम्पवात जिले की परियोजनाओं की समीक्षा

देहरादून। नाबार्ड, उत्तराखण्ड क्षेत्रीय कार्यालय, देहरादून के मुख्य महाप्रबंधक डॉ. ज्ञानेंद्र मणि ने पिथौरागढ़ व चम्पवात जिले में नाबार्ड द्वारा संचालित विभिन्न विकासात्मक परियजनाओं की समीक्षा व निगरानी यात्रा की। यात्रा का मुख्य उद्देश्य जिले में नाबार्ड के सहयोग से चल रही परियोजनाओं की समीक्षा के साथ-साथ विकास हेतु उपलब्ध संभाव्यता क्षेत्र को भी तलाशना था।
अपनी यात्रा पर मुख्य महाप्रबंधक द्वारा देवभूमि निधि स्वायत सहकारिता सहित 6 एपपीओं के सदस्यों एवं पदाधिकारियों से मुलकात कर व्यवसाय के अनेक आयामों पर चर्चा की। डॉ. मणि ने क्लस्टर के रूप में विकास एवं दुग्ध उत्पादकता बढ़ाने पर पशुओं के दाना पानी, उचित रखरखाव एवं अच्छी नस्लों के पशु खरीदने की सलाह दी। साथ ही शेयर पूंजी एवं सदस्यता बढ़ा कर विभिन्न योजनाओं का लाभ लेकर व्यवसाय को नए गति देने पर जोर दिया। दूग्ध एफपीओं से वार्ता करते हुए डॉ. मणि ने दूध के साथ-साथ दूध के अन्य उत्पादों को भी तैयार करने पर जोर दिया।
जलवायु परिवर्तन के कारण घटती कृषि उपज के खतरे को ध्यान में रखते हुए नाबार्ड द्वारा संचालित अडॉप्टेशन फण्ड के सहयोग से 5.36 करोड की जलवायु परिवर्तन परियोजना के अंतर्गत विभिन्न घटकों जैसे कि परंपरागत बीज बैंक, स्प्रिंग शैड, ड्रिप इरिगेशन, रूफ टॉफ वर्षा जल संरक्षण, संरक्षित खेती, चारा उत्पादन, जंगल पुनरुत्थान आदि से किसानों को जागरूक किया ताकि भविष्य में उनके उत्पादन को कम होने से बचाया जा सके। परियोजना की यात्रा के दौरान डॉ. मणि ने कहा कि यह परियोजना किसानों को भविष्य के खतरों से लड़ने में समक्ष बनाएगी तथा कृषि में नवाचार व तकनीक के माध्यम से उनकी आय बढ़ाने में भी सहायक होगी। यह परियोजना नाबार्ड के पूर्ण अनुदान से कार्यान्वित की गई है।
अपनी यात्रा के दौरान डॉ. मणि ने मुनस्यारी विकास खण्ड में नाबार्ड द्वारा संचालित व बायफ द्वारा क्रियान्वित जनजाति विकास परियोजना की भी यात्रा की तथा विकासात्मक कार्यों का निरीक्षण किया। इस परियोजना में 160 लाभार्थियों को कृषि क्षेत्र तथा 40 को कृषित्तर क्षेत्र में सहयोग दिया गया है। डॉ. मणि ने कृषित्तर क्षेत्र में अंगोरा खरगोश पालन तथा उसके ऊनी उत्पाद की गुणवत्ता की प्रशंसा की और कहा इन उत्पादों को उचित मूल्य तथा मार्केटिंग लिए ओएफपीओ के गठन की संभाव्यता पर कार्य किया जा सकता है।
डॉ. मणि की यात्रा के अवसर पर उत्तराखण्ड ग्रामीण बैंक एवं जिला सहकारी बैंक, पिथौरागढ़ ने मिलकर क्रेडिट कैम्प का आयोजन किया जिसमें 1.48 करोड़ का ऋण किसानों तथा स्वयं सहायता समूहों को वितरित किया। डॉ. मणि ने नाबार्ड के अनुदान से तैयार मोबाइल डेमो वेन भी उत्तराखण्ड ग्रामीण बैंक को सौंपी जो गाँव –गाँव पहुँच कर लोगों को बैंकिग सुविधाएं प्रदान करने के साथ-साथ उनमें वित्तीय जागरूकता भी पैदा करेगी। साथ ही डॉ. मणि ने बैंक कर्मियों को संबोधित करते हुए कहा कि बैंक को जीएलसी बढ़ाने एवं बैंक मित्रोँ के माध्यम से क्लस्टर एप्रोच में ऋण संभावनाएं तलाशने पर जोर देने चाहिए।
मुख्य महाप्रबंधक ने नाबार्ड के सहयोग से जिले के 7 उप्तादों को मिले जीआई टैगिंग के लाभार्थी किसानों, कास्तकारों व हितधारकों से भी मुलाकात की। कृषकों ने नाबार्ड को धन्यवाद दिया और कहा कि उनके क्षेत्र में प्रचलित विधाएं व कलाएं जो लुप्त होने की कगार पे थीं उनको एक नई ऊर्जा से दुबारा जोड़ने में नाबार्ड की इस पहल ने काफी सहयोग किया है। निधि संस्था के निदेशक ने बताया कि जीआई परियोजना (6 उत्पाद-मुनस्यारी का राजमा, थुलमा, टम्टा, ऐपन, रिंगाल, च्यूरा) में कुल लागत का लगभग 80% नाबार्ड ने अनुदान दिया और साथ ही सतत तकनीकी सहयोग भी प्रदान किया।
मुख्य महाप्रबंधक ने कहा कि नाबार्ड न केवल जीआई रजिस्ट्रेशन में सहयोग करता है अपितु जीआई रजिस्टर्ड उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए क्लस्टर एप्रोच में मार्केटिंग सहयोग भी दे रहा है। साथ ही उन्होंने कहा कि अगर ऐसे अन्य और उत्पाद चिन्हित होते हैं तो लोकल संस्थाओं के माध्यम से उनके रजिस्ट्रेशन एवं संवर्धन में नाबार्ड सहयोग करता रहेगा।
इसके अलावा यात्रा के दौरान डॉ. मणि ने सौर ऊर्जा चालित वाटर लिफ्ट यूनिट का भी शुभारंभ किया तथा फार्म मशीने भी लाभार्थियों को दी। साथ ही आरआईडीएफ के सहयोग से बनी रही थरकोट झील के निर्माण कार्यों की भी समीक्षा की तथा संबंधित अधिकारियों से कार्य में तेजी लाने का सुझाव दिया। यात्रा के दौरान जिला विकास प्रबंधक अमित पांडे भी साथ रहे।

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