जनवरी माह की 14 तारीख को मकर संक्रांति का उत्सव पूरे भारतवर्ष में हर्षोल्लास से मनाया जाता है। अधिकांश लोग यूँ तो इस पर्व को सिर्फ फसल-कटाई के त्योहार के तौर पर ही समझते और मानते हैं। पर क्या आप जानते हैं? दक्षिण भारत में इस दिवस का माहात्म्य अत्यंत पावन और आध्यात्मिक है। खास कर केरल प्रदेश में यह दिन भगवान ‘अय्यप्पा’ को समर्पित है। इस दिन विश्व-भर से करोड़ों भक्त भगवान अय्यप्पा के दर्शन करने के लिए सबरीमाला मंदिर तक की यात्रा तय करते हैं। भगवान अय्यप्पा के धाम तक पहुँचने की यात्रा कई पड़ावों से होकर गुजरती है। एक पथिक उन्हें बहुत ही धैर्य और प्रतिबद्धता से पार करता है। तभी वह अंततः अपने अय्यप्पा स्वामी के दर्शन प्राप्त कर पाता है। शबरीमला यात्रा के पड़ाव कुछ इस प्रकार हैं- शबरीमला यात्रा का पहला पड़ाव है- ‘मालाधारणम् इस रीति के अंतर्गत ‘गुरुस्वामी’ यात्रा में शामिल पथिकों को रुद्राक्ष या तुलसी की माला पहनाते हैं। ‘यात्री’ उन्हीं के मार्गदर्शन और संरक्षण के छत्र तले शबरीमला की यात्रा को पूर्ण करते हैं। आध्यात्मिक संदर्भ- यहाँ ‘गुरुस्वमी का माला पहनाना’ सतगुरु द्वारा शिष्य का चयन और उसे स्वीकार करना इंगित करता है। मण्डल-व्रतम्- मालाधारणम् के पश्चात् यात्रा के दूसरे पड़ाव पर यात्री 41 दिन का उपवास धारण करता है। आध्यात्मिक संदर्भ- गुरु द्वारा अपनाए जाने के पश्चात् शिष्य मण्डल-व्रतम् याने उपवास के पड़ाव से गुजरता है। इसका गूढ़ अर्थ हुआ कि शिष्य गुरु के समीप बैठकर उनसे सत्संग-प्रवचनों और सदगुणों को ग्रहण करता है। इरुमुड़ि-कट्टु- इसमें यात्री ‘इरुमुड़ि-कट्टु’ को लादकर अपनी यात्रा में आगे बढ़ता है। ‘इरुमुड़ि-कट्टु’- 3 शब्दों के मेल से बना है- ‘इरु’, ‘मुड़ि’ और ‘कट्टु’। इनका क्रमानुसार अर्थ हुआ- ‘दो’, ‘थैली’ (वाला), ‘बस्ता’। इस बस्ते में दो थैलियाँ या भाग होते हैं। पहले भाग में घी से भरा तीन आँख वाला नारियल और पूजा की अन्य सामग्री होती है। दूसरे भाग में यात्री अपनी निजी जरूरतों के सामान को रखता है, जिसे वह यात्रा के दौरान इस्तेमाल करता है। आध्यात्मिक संदर्भ- इस मोड़ पर सद्गुरु शिष्य के तृतीय नेत्र का ब्रह्मज्ञान द्वारा उन्मूलन करते हैं। यात्री द्वारा ‘त्रय-नेत्री नारियल’ को बस्ते में धारण करना तीसरी आँख के खुलने का ही द्योतक है। यहाँ घी जागृत आत्मा को संबोधित करता है। शबरी-पर्वत- अपना बस्ता तैयार करके, गुरु स्वामी के सानिध्य में, ‘यात्री’ शबरी-पर्वत के शिखर की ओर यात्रा करना आरंभ करता है। इस पूरे सफर के दौरान वह स्वामी शरणम् अय्यप्पा का सतत सुमिरन करता रहता है। आध्यात्मिक संदर्भ- जब सद्गुरु ब्रह्मज्ञान द्वारा शिष्य का तृतीय नेत्र खोलते हैं, तब वे उसके अंतर्जगत में प्रभु का आदि-नाम भी प्रकट कर देते हैं। गर्भ-गृह- यात्रा के इस अंतिम पड़ाव पर ‘यात्री’ गर्भ-गृह में भगवान अय्यप्पा की मूर्ति के समक्ष पहुँचता है। प्रथा-स्वरूप वह यहाँ पर ‘घी-पूरित नारियल’ की तीसरी आँख द्वारा अय्यप्पा स्वामी की मूर्ति पर घी अर्पित करता है। फलस्वरूप भगवान अय्यप्पा का आशीर्वाद प्राप्त कर अपनी यात्रा को सफल बनाता है। आध्यात्मिक संदर्भ- शिष्य की चेतना जब अपनी आंतरिक यात्रा पूरी करके ब्रह्मरंध्र तक पहुँचती है, तो यूँ कहें कि जब एक जीवात्मा परमात्मा के निवास-स्थान तक पहुँचती है- तब वह स्वयं को परमात्मा को अर्पित कर उनसे पूर्ण मिलन प्राप्त करती है। अंततः आप समझ सकते हैं कि स्थूल दृष्टि से मात्र बाहरी प्रथाओं का त्योहार- ‘मकर-संक्रांति’ आध्यात्मिक सार से ओत-प्रोत है। एक जीवात्मा को अपने लक्ष्य परमात्मा तक ले जाने का गूढ़ संदेश ‘शबरीमला-यात्रा’ द्वारा संप्रेषित करता है। तो आइए, भगवान अय्यप्पा को तत्व से जानने हेतु- ‘मकर-संक्रांति पर करें अंतयात्रा’! आपकी यात्रा मंगलमय हो!
श्री आशुतोष महाराज जी(संस्थापक एवं संचालक, दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान)