सूर्य प्रकाश@उत्तरकाशी।
भले ही ब्रह्मा जी अपूज्य देवताओं की श्रेणी में आते हो और ग्रंथों में पुष्कर के अलावा कहीं भी भगवान ब्रह्मा का मंदिर नही हो । लेकिन गंगा – यमुना के मध्य स्थल ब्रहमखाल में ब्रह्मा जी का पौराणिक मंदिर स्थापित है। इस जगह को ब्रह्मा की तपस्थली के नाम से भी जाना जाता है। जिसका जिर्णोद्धार किया गया और ब्राह्मणों ने वैदिक मंत्रोंचारण के साथ मंदिर एवं मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा यज्ञ शुक्रवार से प्रारंभ कर दिया। इस दौरान ग्रामीणों और ब्यापारियो ने कलश शोभायात्रा निकाल आस्था की डुबकी लगाकर पुण्य अर्जित किया।
मान्यतानुसार आदिकाल में पुष्कर राजस्थान से कुछ रावत जाति के पूर्वज पलायन कर यहां आकर विस्थापित हो गये । उन पूर्वजों ने पुष्कर से अपने इष्ट देव ब्रह्मा की एक मूर्ति साथ लाकर खाल यानि गधेरे के किनारे स्थापित कर दी और इस जगह का नाम ब्रहमखाल रख दिया। लंबे समय से इस पौराणिक मंदिर के जीर्णोद्धार के प्रयास ग्रामीण कर रहे थे और जिला पंचायत अध्यक्ष दीपक बिजल्वाण के प्रयासों से इस पौराणिक मंदिर का पुनर्निर्माण हो सका। मंदिर के जीर्णोद्धार के साथ ही ब्रह्मदेव की नई दिब्य मूर्ती को श्रद्धालुओं ने शोभायात्रा निकालकर मंदिर में पूजन के लिए रख दिया। हालांकि मंदिर में ब्रम्हा जी के अलावा प्राचीन शिवलिंग को पूजन की मान्यता है क्योंकि ब्रह्मा जी अपनी ही पत्नी के श्राप से अपूज्य हो गये थे। वेदों के जनक ब्रह्मा जी के इस मंदिर को अब तीर्थाटन धार्मिक स्थल बनाने की कोशिश भी की जा रही है । मंदिर समिति के अध्यक्ष गिरीश सिंह रावत ब्यापार मंडल अध्यक्ष राजेश चंद रमोला जिला पंचायत सदस्य शशी कुमांई , सतेन्दर कुमांई ने मंदिर को भब्य और दिब्य रुप देने में भागीदारी निभाई है।