देहरादून। उत्तराखंड विधानसभा बजट सत्र के पहले दिन विपक्षी नेताओं ने सदन में कानून व्यवस्था सुधारने और अधूरे विकास कार्य को लेकर सरकार पर तीखे सवाल दागे। वहीं, दूसरी तरफ विधानसभा के बाहर भी राज्य सरकार को घेरते हुए भू-कानून और लोक निर्माण विभाग के बेलदार आउटसोर्सिंग कर्मचारियों की मांग का मुद्दा सरकार के खिलाफ धरना प्रदर्शन वाला रहा।
विपक्ष ने राज्य में जल जंगल जमीन को संरक्षित करने के लिए हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर भू-कानून लागू करने की मांग की। वहीं दूसरी ओर लोक निर्माण विभाग में आउटसोर्सिंग बेलदार और कर्मचारियों ने विधानसभा घेराव करने का प्रयास करते हुए ठेकेदारी प्रथा से मुक्त कर 1100 से अधिक कर्मियों को संविदा और उपनल के माध्यम से सेवायोजित करने की मांग दोहराई। इससे पहले विधानसभा सत्र के पहले दिन सदन के बाहर सरकार को घेरने के प्रयास में सैंकड़ों पीडब्ल्यूडी के बेलदार कर्मचारी संघ ने धरना प्रदर्शन किया और विधानसभा कूच करने का प्रयास किया। हालांकि, इससे पहले ही रिस्पना चौक के पास लगी बेरिकेटिंग में भारी पुलिस बल ने उन्हें रोक दिया। जिससे नाराज बेलदार कर्मचारी संघ के लोग सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए सड़क पर धरना देने के लिए बैठ गए।
प्रदर्शनकारियों ने कहा उनका पिछले 53 दिनों से आंदोलन जारी है। वहीं, धरना प्रदर्शन करते हुए लोक निर्माण विभाग मंत्री सतपाल महाराज के आवास के बाहर भी धरना दे रहे हैं, लेकिन सरकार उनकी मांग को मानना तो दूर उनकी पीड़ा को सुनने तक को राजी नहीं है।बेलदार कर्मचारियों ने कहा जहां एक तरफ प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी बड़े-बड़े दावे कर राज्य वासियों के हित में फैसले लेने की बात कर रहे हैं। वहीं, दूसरी तरफ लोक निर्माण विभाग के अंर्तगत विगत कई वर्षों से बेलदार कर्मचारी ठेकेदारी प्रथा से बंधुआ मजदूर की जिंदगी जीने को मजबूर हैं। सरकार से उनकी एक ही मांग है कि उन्हें भी ठेकेदारी प्रथा से मुक्त कर संविदा व उपनल के माध्यम से सेवायोजित किया जाए।
बेलदार कर्मचारी संघ के संयुक्त मंत्री तेजपाल सहा ने कहा सरकार उनकी मांगों को लेकर पूरी तरह से मूकदर्शक बनी हुई है। सरकार का अंधा कानून इस कदर ठेकेदारों पर हावी है कि जब उनकी मांग लोक निर्माण विभाग मंत्री के पास पहुंचती है तो मंत्री साहब कहते हैं कि विभागीय सचिव उनकी एक नहीं सुनते। ऐसे में अगर मंत्री महोदय की ही सचिव नहीं सुनते तो ऐसी सरकार में अंधा कानून किसकी जायज मांग को सुन सकता है। शंकर शाह के मुताबिक यह सारा खेल भ्रष्टाचार के तहत चल रहा है। जहां ठेकेदारों को संरक्षण देकर सरकार न सिर्फ बेलदार कर्मचारियों के साथ नाइंसाफी कर रही है, बल्कि सरकार को भी ठेकेदारी प्रथा से राजस्व का घाटा हो रहा है। वहीं, दूसरी तरफ विधानसभा के बाहर भू-कानून को लेकर एक बार फिर भू-अध्यादेश अधिनियम अभियान उत्तराखंड संगठन ने हिमाचल की तर्ज पर राज्य में भू कानून लागू करने की मांग को दोहराया है।
भू कानून की मांग करने वाले प्रदर्शनकारियों को भी विधानसभा से पहले ही रिस्पना चौक पर पुलिस ने बेरिकेटिंग लगाकर रोक दिया। जिसके बाद प्रदर्शनकारी सड़कों पर धरना देने लगे। आखिरकार अपर जिला मजिस्ट्रेट के माध्यम से सशक्त भू कानून लागू की मांग को लेकर मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपा गया।भू अध्यादेश अधिनियम अभियान संगठन संयोजक शंकर सागर ने कहा ऐसा क्या कारण है कि 22 साल उत्तराखंड गठन के बावजूद अपना भू-कानून राज्य में स्थापित नहीं हो सका है। इतना ही नहीं यूपीजेडएलई 1950 की धारा 154 की कई उप धाराओं में लगातार संशोधन कर यहां भूमि विक्रय कानून को कमजोर किया गया है। यही वजह है कि राज्य गठन के समय से उत्तराखंड में जो कृषि योग्य भूमि का कुल रकबा 7.70 लाख हेक्टेयर था, अब वो 22 साल उपरांत 1.20 लाख हेक्टयर भूमि आखिर कम कैसी हो गई और किस नियमों के तहत बिक गई।