सूर्य प्रकाश@उत्तरकाशी। मैदानी क्षेत्र की अपेक्षा पहाडो में खेती बाडी का कार्य बड़ा कठिन होता है ढालदार और सीढीनुमा खेती पर कार्य करना किसी चुनौती से कम नही है। यहां पर खेती की जिम्मेदारी महिलाओं पर होती है। पहाडो में महिलाएं परम्परागत खेती को ही ज्यादा महत्व देती हैं. हालांकि, परम्परागत खेती में अधिक मेहनत और भौगोलिक परिस्थितियां काश्तकारों की कमर तोड़ देती हैं। इन विपरीत परिस्थितियों को चुनौती के रुप में लेकर पुरोला विकासखण्ड की सुनाली गांव की 51 वर्षीय पूनम ने वो कर दिखाया है, जिसके लिए सीएम पुष्कर सिंह धामी ने वीडियो कॉल से पूनम को बधाई और शुभकामनाएं दी हैं।
पुरोला विकासखंड के सुनाली गांव की 51 वर्षीय पूनम देवी का कहना हैं कि पहले वह गांव में अपनी परंपरागत खेती करती थीं। दिन-रात की हाड़तोड़ मेहनत के बाद भी अधिक फायदा नहीं होता था, दो साल पहले उनका संपर्क कोका-कोला एवं इंडो-डच हॉर्टिकल्चर कंपनी से हुआ. कंपनी के सहयोग से पूनम ने 5 नाली भूमि पर उन्नत सेब योजना के तहत विदेशी प्रजाति के किंगराट और गालाशिनिको के 500 सेब की पौध लगाई. पारंपरिक खेती को छोड़ कर पूनम ने सेब के बागीचे में दो साल तक कड़ी मेहनत करने के बाद उनकी मेहनत रंग लाई हैI वर्तमान में उनके बगीचे में करीब ढाई टन सेब लगे हैं।
. पहले वर्ष उन्होंने करीब ढाई लाख रुपये के सेब बेचे थे। उनकी मेहनत के लिए कंपनी ने पूनम को उन्नत बागवान पुरस्कार से नवाजा था और बीते शनिवार को उनके ही बगीचे में आयोजित कार्यक्रम में सीएम पुष्कर धामी ने वीडियो कॉल के माध्यम से पूनम को बधाई दी है। कास्तकार पूनम ने बताया कि दो वर्ष में ही उन्हें उनकी मेहनत का अच्छा फल मिला है। पंतनगर के ग्रीनफील्ड एयरपोर्टकंपनी के निदेशक सुधीर चड्डा ने बताया कि वह उन्नत सेब योजना के तहत नौगांव, मोरी, पुरोला में 500 सेब काश्तकारों के साथ कार्य कर रहे हैं, उनके बगीचों में इटली, न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया जैसे देशों की सेब की रेड डिलिशियस, स्कारलेट, स्परग और किंगराट प्रजाति के सेब लगाए जा रहे हैं। ये एक साल में ही सैम्पल फल और दो वर्ष में बाजार में बेचने वाले फल दे देते हैं।चड्डा ने बताया कि अभी प्रदेश सरकार के साथ 10 हजार किसानों को इस योजना से जोड़ने के लिए बात चल रही है, जो कि 2 से 3 माह के भीतर शुरू होगी।साथ ही पुरोला में सेब काश्तकारों के लिए एक कलेक्शन सेंटर भी बनाया गया है। उन्होने बताया कि अभी हिमाचल प्रदेश का सेब भी बाजार में नहीं आया है। उससे पहले ही ये सेब बाजार में पहुंच गए हैं, जिसके पूनम जैसे कास्तकारो को अच्छी आमदनी हो रही है और यह उन तमाम नौजवानो के लिए प्रेरणा भी है जो कोरना काल में अपना रोजगार गंवाकर घर में बैठे है ऐसे लोग भी पूनम जैसी कास्तकार से प्रेरणा लेकर अपना स्वरोजगार शुरू कर अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं।